स्वास्थ्य का खजाना है चावल

भारत में चावल का प्रयोग प्राचीन काल से भोजन के रूप में किया जाता रहा है। चावल को पका कर तो खाया ही जाता है, इसके अलावा इसकी अनेक प्रकार की अनारसा आदि मिठाइयाँ और दोसा, इडली, पीठा, चीले आदि अन्यान्य व्यंजन भी बनते हैं। पूरे देश में यदि चावल इतना लोकप्रिय है तो इसका एक बड़ा कारण इसका स्वास्थ्यवर्धक होना है। चावल केवल भोजन ही नहीं, एक उत्तम औषधि भी है। इसका सेवन करने से ढेर सारे फायदे होते हैं।

चावल के कई अलग अलग प्रकार होते हैं जैसे कि लम्बे चावल, सफेद चावल, ब्राउन चावल, बासमती चावल आदि। भारत में लगभग 4000 प्रकार के चावल उपजाए जाते हैं। भावप्रकाश निघण्टु में चावल के शालि, लाल शालि, कलम, पाण्डुक आदि कई भेदों का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न निघण्टुओं (आयुर्वेदिक कोष यानी डिक्शनरी) में इसकी कई प्रजातियों का वर्णन किया गया है। सफेद चावलों के मुकाबले भूरे चावल ज्यादा फायदेमन्द होते हैं। भूरे चावल में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी. मैंगनीज, फास्फोरस, आयरन, फाइबर, फैटी एसिड आदि सफेद चावल की तुलना में दुगने होते हैं। चावल में तत्काल उर्जा प्राप्त करने, रक्त शर्करा को स्थिर करने और बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करने की क्षमता होती है।

चावल खाने के अनेक फायदे हैं। शालि चावल पचने पर मधुर, पेट को ठण्डा करने वाला, फाइवरयुक्त, तैलीय, जल्द पचने वाला और वात तथा कफ को बढ़ाने वाला होता है। यह पित को शान्त करता है। यह शरीर को बल देता है औरमेद तथा माँस की वृद्धिकरता है तथा वीर्य को पुष्ट करता है। मल को बान्धता है और पेशाब को बढ़ाता है। यह गले के स्वर को ठीक करता है। लाल शालि चावल सभी शालि धान्यों में श्रेष्ठ तथा वात पित और कफ तीनों दोषों को शान्त करने वाला होता है। उपरोक्त गुणो के अलावा यह भूख बढ़ाता है और हृदय को प्रसन्न करता है यह आँखो के लिए लाभकारी है। यह बुखार और बुखार के कारण लगने वाली प्यास को समाप्त करता है। यह दम फुलना, खाँसी और जलन को समाप्त करता है। इसकी जड़ में भी लगभग यही गुण होते हैं। विभिन्न बीमारियों में चावल के प्रयोग की विधि यहाँ प्रस्तुत है।

शालि चावल के बारीक टुकड़ों को दूध के साथ पका कर पतली खीर बना लें। इस खीर को पिलाने से प्रसूता स्त्रियों में दूध की वृद्धि होती है।

चावल का धान पेट के लिए काफी लाभकारी होता है। इसके प्रयोग से धान के लावा का सेवन करने से उल्टी बन्द होती है।
धान के लावे से बने सत्तू् में मधु तथा घी मिलाकर सेवन करने से अथवा शालिधान के लावे की दलिया में मधु मिलाकर सेवन करने से उल्टी बन्द हो जाती है।

धान का लावा, कपित्थ, मधु और पिप्पली की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से सभी प्रकार की उल्टी तथा भूख न लगना का ठीक होता है।

गन्ने से बने शक्कर को घी में भूनकर, पीसकर उसमें लावे का चूर्ण, मिश्री एवं मधु मिलाकर सेवन करने से दर्द युक्त खून और पेट की गरमी से होने वाली दस्त ठीक होता है।

चावल को पकाकर (भात बनाकर) तक्र (छाछ) के साथ सेवन करने से गर्मी, अत्यधिक प्यास, जी मिचलाना तथा दस्त में लाभ होता है।

पेट में कीड़े पड़ जायें तो यह बहुत ही दुखदायी होता है। यह समस्या) सबसे अधिक बच्चों में होती है लेकिन बड़ों की आंतों में भी कीड़े हो सकते हैं। चावल को भूनकर उनको रात भर पानी में भिगोकर सुबह छानकर उस पानी को पीने से पेट के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।

भोजन के न पचने और पेट की गरमी से बवासीर रोग को बढ़ावा मिलता है। शालि एवं साठी चावल का सेवन खूनी बवासीर में लाभकारी होता है।

लीवर तथा तिल्ली में समस्या होने से पीलिया रोग होता है। प्रतिदिन भोजन में शालि चावल के भात का प्रयोग करने से लीवर और तिल्ली दोनों ही ठीक होते हैं और पीलिया रोग दूर होता है।

पेशाब में होने वाली जलन तथा दर्द आदि की समस्याओं में चावल काफी फायदेमंद हैं। शतावर, काश, कुश, गोखरू, विदारीकन्द, शालिधान (शालि चावल), ईख तथा कसेरू को बराबर मात्रा में लेकर चार गुने पानी में रात भर भिगो दें। इस पानी का 20-40 मि.ली. हिम, मधु एवं शर्करा मिलाकर सेवन करने से पित के कारण पेशाब में होने वाली कठिनाइयों में लाभ होता है।

मासिक धर्म के दौरान ज्यादा रक्तस्राव यानी ब्लीडिंग हो रहा हो तो प्रतिदिन दूध में भिगोए हुए लाल शालि चावल को पीसकर उसमें मधु मिलाकर सेवन कें। इस प्रयोग से तेज रक्तप्रदर में जल्द लाभ होता है।

हड्डी टूटने के स्थान पर कुशा घास बांध कर, शालि चावल के आटे और शतधौत घी को मिलाकर लेप कर दें। टूटी हड्डियां जुड़ जाएंगी।

चावलों विशेषकर भूरे चावलों में फेनोलिक यौगिक और एंटी-इंफ्लामैट्री गुण होते हैं इसलिए वे त्वधचा की जलन और लाली को भी दूर करने में मदद करते हैं। इसके कुछ प्रयोग निम्नानुसार हैं –

1. शालि चावल के धोवन से पैरों को धोने पर पैरों की जलन शांत होती है।
2. शालि चावलों को पीसकर पैरों में लगाने से पैरों की सूजन तथा जलन मिट जाती है।
3. आग से जले हुए स्थान पर शालि चावल को पीसकर लेप करने से जलन शान्त होता है।

शालि चावल को पीसकर लगाने से फोड़े, फुन्सी तथा रोमकूप शोथ (बलतोड़) में लाभ होता है।
चावलों में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। सफेद चावलों को पानी में भिगोकर उस पानी से चेहरे को धोने से चेहरे की झुर्रियाँ तथा झाँइयां मिटती हैं।

आमतौर पर बुखार होते ही लोग चावल का सेवन बंद कर देते हैं। परंतु यदि हम शालि चावल का प्रयोग करें तो यह बुखार को दूर करने में भी लाभकारी होता है।

गोक्षुर तथा छोटी कटेरी के काढ़े से लाल शालि-चावल की पेया बनाकर सेवन करने से बुखार के कारण उत्पन्न पसलियों के दर्द, पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द तथा सरदर्द आदि में लाभ होता है।

जलन, उल्टी तथा अत्यधिक प्यास से पीडि़त रोगी को धान के लावे के सतू् में शक्कर तथा मधु मिलाकर सेवन कराने से लाभ होता है।

पुराने शालि चावल तथा साठी चावल से बनाए गए दलिया तथा भात आदि का सेवन बुखार में पथ्य है।
रक्तपित्त यानी खूनी पित्त में शरीर गर्म हो जाता है और रक्तपित्त नाक, गुदा और मूत्रद्वार आदि स्थानों से बाहर आता है। इस रोग अंग्रेजी में हैमेटाइसिस कहते हैं।

धान के लावा के चूर्ण (पाउडर) में गाय का घी एवं मधु मिलाकर खाने से रक्तपित्त यानी खून की गरमी में लाभ होता है।
शालि चावल तथा साठी चावल का भोजन में प्रयोग रक्तपित्त के रोगियों के लिए पथ्य है।

हालांकि चावल काफी लाभकारी धान्य है परंतु चावल को खाने के कुछ नुकसान भी हैं। पथरी तथा मधुमेह के रोगियों के लिए चावल नहीं खाना चाहिए। हालांकि चावल खून में रक्तशर्करा यानी चीनी के स्तर को नियंत्रित करता है, परंतु मधुमेह के रोगियों को चावल का सेवन बहुत ही सीमित मात्रा में करना चाहिए। उन्हें केवल लाल या भूरे चावल ही खाने चाहिए, सफेद चावल बिल्कुल भी नहीं खाने चाहिए।

चावल खाने से शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है और इसलिए यह मोटापे को नियंत्रित करने में सहयोगी होता है, परंतु इसके अधिक सेवन से मोटापा बढ़ भी सकता है।