कौन झुठला सकता है राजस्व-अभिलेख को?

स्व. राजेंद्र सिंह अयोध्या मामले में हिंदुओं के पक्ष के एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण गवाह थे। रोचक बात यह है कि उन्हें रा. स्व. संघ या विश्व हिंदू परिषद् जैसी किसी संगठन ने नहीं बुलाया था। वे स्वयं ही सर्वोच्च न्यायालय में गवाही के लिए प्रस्तुत हुए थे। उनका कहना था कि उनके पास सिख साहित्य में से ऐसे प्रमाण हैं जो स्थापित करते हैं कि गुरु नानक देव अयोध्या गए थे और उन्होंने वहाँ भगवान श्रीराम का मंदिर देखा था। चूँकि राजेंद्र सिंह को किसी भी पक्षकार ने गवाही के लिए नहीं बुलाया था, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी परीक्षा ली कि वे गवाही के लिए उपयुक्त हैं या नहीं और उनके पास कुछ ठोस जानकारी है भी या नहीं। वे सर्वोच्च न्यायालय की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और उनकी गवाही स्वीकृत हुई। राजेंद्र सिंह ने सिख साहित्य के प्रमाणों को सामने लाने के अतिरिक्त राजस्व अभिलेखों को भी न्यायालय के सम्मुख रखा। वे स्वयं हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दु आदि भाषाओं के अच्छे जानकार थे। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि के सम्बन्ध में शिकस्ता उर्दू में प्राप्त राजस्व-अभिलेख (रेवेन्यु-रिकार्ड) का हिंदी-रूपान्तरण किया था। यह बन्दोबस्त साबिक=सन् 1861, 1893 और 1937 ईसवी के रूप में प्राप्त होता है। इसके ए-4 साइज के लगभग 150 पृष्ठ बन जाते हैं। इस सारे कार्य में श्री भीम सिंह पटवारी, फरीदाबाद ने बड़ा परिश्रम किया है। आज राजेंद्र सिंह जी हमारे बीच में नहीं हैं। परंतु उनका लिखा यह प्रामाणिक लेख हमें प्राप्त हुआ और उसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।

अवध पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार से पहले वहाँ पर शिया नवाबों में से अन्तिम तीन का शासनकाल इस प्रकार बनता है : 1. मुहम्मद अली शाह (1837 से 1842), 2. अहमद अली शाह (1842 से 1847), 3. वाजिद अली शाह (1847 से 1856)। नवाब वाजिद अली शाह के शासन के अन्तिम वर्ष में मौलवी अमीर अली अमेठवी की सरपरस्ती में सन् 1855 में मुजाहिदों ने हनुमानगढ़ी पर कब्जा जमाने के लिए जिहाद छेड़ दिया था जिसे हिंदुओं ने विफल कर डाला था। 7 नवम्बर, 1855 को मौलवी अमीर अली अमेठवी को मार डाला गया। इस घटना के चन्द महीनों बाद 7 फरवरी, 1856 को अवध का नवाबी दौर ख़त्म होकर वहाँ कम्पनी बहादुर का कब्जा हो गया।
इसी के साथ अंग्रेजों द्वारा अयोध्या के रेवेन्यू के बन्दोबस्त का संक्षिप्त कार्य (समरी सेटेलमेंट ऑफ रेवेन्यु) प्रारम्भ किया गया जो 1857-1858 तक जारी रहा। यह सब पूर्ववर्ती नवाबी दौर के अभिलेखों के क्रम को आगे बढ़ाकर हुआ।

बंदोबस्त साबिक अव्वल (1861 ईसवी)
इससे सम्बन्धित जो खसरा किश्तवार मशमूला मिसल बन्दोबस्त साबिक अव्वल बाबत मौजा राम-कोट परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद बाबत सन् 1861 ईसवी नामक दस्तावेज मिलते हैं, उसमें श्रीरामजन्मभूमि-परिसर खसरा नं. 163 (9 गोशों सहित) के अंतर्गत दिखाया गया है। गोशा अलिफ, बे, जीम, दाल, रे, सीन, स्वाद, तोय और ऐन सहित इस खसरा नं. 163 की कुल अराजी=भूमि कालम=स्तम्भ नं. 9 में 5 बीघा 4 बिस्वा बताई गई है। इस प्रकार पूरे रामकोट=कोट-राजा-राम-चन्दर में श्रीराम-जन्मभूमि-परिसर का कुल रक्बा=क्षेत्रफल 5 बीघा 4 बिस्वा बनता है।
यहाँ पर केवल कॉलम नं. 2 में आबादी जन्म अस्थान के बाद व जमा मस्जिद शब्द जोड़े गए हैं। दूसरी पंक्ति में पहले कॉलम में गोशा अलिफ के बाद जो कॉलम नं. 2, 3 और 4 में ऐजन शब्द आए हैं, वे तीनों कॉलमों में पहले कॉलम की सीध में होने चाहिए थे। किन्तु कॉलम नं. 2 में उसकी सीध में व जमा मस्जिद के आ जाने से प्रक्षेपकार को कॉलम-नं. 2 का ऐजन शब्द उस सीध से नीचे लिखना पड़ा। इस प्रकार किए जाने से पता चलता है कि कॉलम नं 2 में हेरा-फेरी की गई है। यह सब मूलत: उर्दू में प्राप्त रिकार्ड को जाँचने से साफ पता चल जाता है। कैफियत शीर्षकवाले इस कॉलम में मूलत: यक चाह पुख़्ता वाकया है शब्दों को काटकर उनके स्थान पर मय कब्रिस्तान पुख़्ता तादाद दरख़्तान हस्ब मुन्दर्जा खसरा आबादी बढ़ाया गया है। चूंकि ये सभी प्रक्षेप मुसलमानों के पक्ष में जाते हैं, इसलिए इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि ये सारी हेरा-फेरियाँ उन्हीं के हमदर्दों ने करवाई होंगी।
जांच में प्रक्षेपों का होना सही पाया गया
हिंदू पक्ष की ओर से जब न्यायालय में प्रक्षेपों की बात को लेकर ध्यान दिलाया गया तो उसने इस पर जाँच के आदेश दिए। तदनुसार श्री शम्भुनाथ, सचिव, राजस्व-विभाग, उत्तर प्रदेश शासन ने दिनांक 23 अक्तूबर, 1992 को लिखे पत्र संख्या 378/पीएस/आरएस/92 में जिलाधिकारी, फैजाबाद को जांच करने के लिए कह दिया। इसके बाद हस्तलेख लिपि विशेषज्ञ और विधिविज्ञान प्रयोगशाला, उत्तर प्रदेश द्वारा जाँच की गई जिसमें प्रक्षेप होने की बात सही पाई गयी। श्री आर.एन. श्रीवास्तव, जिला मजिस्ट्रेट, फैजाबाद ने दिनांक 24 नवम्बर, 1992 को अपनी 7-पृष्ठीय जाँच रिपोर्ट सचिव, राजस्व-विभाग, उत्तर प्रदेश शासन को भेज दी थी। तीन संलग्नों सहित भेजी गई यह रिपोर्ट विशेष पूर्ण पीठ के न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने अयोध्या मैटर निर्णय दिनांक 30/9/2010 के परिशिष्ट 5 के पृष्ठ 221-235 पर उजागर कर दी है।

जांच रिपोर्ट के आवश्यक अंश
इसमें स्पष्ट रूप से इस प्रकार बताया गया है कि अयोध्या में मौजा कोट राम चन्द्र के प्रथम बन्दोबस्त 1861 के खसरे में भूखण्ड-संख्या 163 की प्रविष्टियों की छानबीन की गयी। उक्त के स्तम्भ संख्या 2में उर्दू में जमा मस्जिद आबादी जन्म स्थान लिखा हुआ है। जमा मस्जिद शब्द स्तम्भ-2 में आबादी शब्द के ऊपर आए स्तम्भ में लिखा गया है। यदि लिखने का आशय आबादी जमा मस्जिद जन्म स्थान होता तब आबादी शब्द जमा मस्जिद से पहले होना चाहिए था। इस बात से यह जिज्ञासा होती है कि क्या जमा मस्जिद तथा आबादी जन्म स्थान, दोनों एक ही क्रम में लिखा गया है अथवा भिन्न क्रम से?
इस जांच के क्रम में जिल्द बन्दोबस्त 1861 में यह देखा गया कि किन गाटों के सम्मुख शब्द जमा तथा मस्जिद कहाँ-कहाँ लिखा गया है। सामान्यत: नामान्तरण की प्रविष्टियों को छोड़कर पूरे जिल्द बन्दोबस्त की मूल प्रविष्टियाँ एक ही व्यक्ति के द्वारा लिखी होनी चाहिए। इस बिन्दु पर विशेषज्ञ की राय से यह स्पष्ट होता है कि जिस व्यक्ति/व्यक्तियों ने खाता खतौनी संख्या 1, 2, 6 एवं खसरा आबादी संख्या 13 में शब्द जमा एवं शब्द मस्जिद लिखा है, उस व्यक्ति/व्यक्तियों ने गाटा-संख्या 163 के स्तम्भ-2 में उर्दू शब्द जमा एवं मस्जिद को नहीं लिखा है। इस प्रकार जिल्द बन्दोबस्त 1861 में एक ही शब्द भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखा गया है।
उपर्युक्त गाटा-संख्या 163 के स्तम्भ 4 की प्रविष्टि को देखने से यह लगा कि शब्द सरकार बहादुर व ऐजन के बीच शब्द ‘व अजहर हुसैनÓ बाद में बढ़ाया गया है। हस्तलिपि विशेषज्ञ ने इस बात की पुष्टि की है कि स्तम्भ-4 में उर्दू-प्रविष्टि सरकार बहादुर व ऐजन के बीच शब्द व अजहर हुसैन बाद में इण्टरपोलेट किया गया है। विशेषज्ञ ने यह भी मत व्यक्त किया है कि गाटा-संख्या 163 के स्तम्भ-16 में कटा हुआ उर्दू-लेख यक चाह पुख़्ता वाकै है के बाद का लेख मय कब्रिस्तान पुख़्ता तादाद दरख़्तान एक सीध में नहीं लिखे गए हैं तथा उक्त दोनों लेखों के नीचे लिखा उर्दू-लेख हस्ब मुन्दर्जा खसरा आबादी उससे भिन्न सीध में लिखा गया है। उपर्युक्त तीनों लेखों की लिखावट परस्पर भिन्न है। विशेषज्ञ ने यह भी स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि उक्त के स्तम्भ-16 में विद्यमान उर्दू-लेख आबादी तथा उसी के स्तम्भ-2 के उर्दू-लेख आबादी भिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखे गए हैं।
समग्र रूप से खसरा (बन्दोबस्त) 1861 के गाटा-संख्या 163 के सम्मुख समस्त प्रविष्टियों के विशेषज्ञ द्वारा परीक्षण से यह ज्ञात होता है कि गाटा-संख्या 163 के स्तम्भ-16 और स्तम्भ-2 में अंकित शब्द आबादी के लेख में भिन्नता, इसी गाटा के स्तम्भ-4 में शब्द अजहर हुसैन का इण्टरपोलेशन तथा इसी गाटा-संख्या के खाना कैफियत अर्थात् स्तम्भ-16 में उपरोक्त तीनों लेखों की लिखावट में भिन्नता यह स्पष्ट करती है कि गाटा संख्या-163 के स्तम्भ 2, 4 तथा 16 में उपरोक्त प्रविष्टियाँ बाद में बढ़ाई गई हैं। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि बन्दोबस्त साबिक अव्वल=1861, दोयम=1893 और सोयम= 1937 ईसवी में कहीं पर भी बाबरी मस्जिद शब्द का उल्लेख नहीं मिलता।
कोट राम चन्दर-संबंधी नक्शों में भी बाबरी मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं। अयोध्या में रामकोट या कोट रामचन्दर-संबंधी पहला नक्शा नक्शा किश्तवार मौजा कोट-राम-चन्दर = रामकोट परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद मशमूले बन्दोबस्त साबिक (1861 ई.) के नाम से उपलब्ध होता है। इसमें हनुमानगढ़ी पूर्व दिशा में और श्रीराम जन्मभूमि परिसर वाला स्थान पश्चिम दिशा की ओर खसरा नं. 163 (9 गोशों सहित) में पड़ता है।
दिनांक 11/12/1990 को इस नक्शे की प्रमाणित प्रतिलिपि (सर्टिफाइड कॉपी) प्राप्त की गई थी। इस नक्शे के ऊपर नं. 1 डालकर इसमें पीले रंग से श्रीराम जन्मभूमि परिसर तथा हनुमानगढ़ी को दिखा दिया गया है जो क्रमश: पश्चिम और पूर्व में पड़ते हैं। इसी के पूरक खसरा किश्तवार मशमूला मिसल बन्दोबस्त साबिक अव्वल (1861 ई.) बाबत मौजा रामकोट परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद बाबत सन् 1861 ई. शीर्षक दस्तावेज से ज्ञात होता है कि श्रीराम जन्मभूमि परिसर खसरा-नं. 163 (9 गोशों सहित) में आता है जिसका कुल रक्बा = क्षेत्रफल 5 बीघा 4 बिस्वा है।

पूरक नक्शा हदबस्त से प्राप्त जानकारी
इसके साथ ही एक और नक्शा भी उपलब्ध होता है जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 11/12/1990 को प्राप्त की गई थी। इसके ऊपर नं. 2 लिख दिया गया है ताकि समझने में सुविधा हो। इस नक्शे का शीर्षक नक्शा हदबस्त मौजा कोट-राम-चन्दर परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद बाबत सन् 1861 ई. है। इसमें कोट-राम-चन्दर की हदबन्दी बताते हुए कुछेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ भी दी गई हैं। इसके पूर्व में लगभग वर्गाकार रूम में हनुमानगढ़ी दर्शाई गई है। नक्शे के मध्य में क्रमश: पूर्व से पश्चिम की ओर नं. 1 के नीचे शिव पटवारी के हिंदी में, नं. 2 के नीचे मुहम्मद जफर जमींदार के उर्दू में और नं. 3 के नीचे पं. भगवानदास अमीन के उर्दू में हस्ताक्षर मिलते हैं। फिर नं. 1 के दक्षिण में नं. 4 के नीचे किसी अंग्रेज अधिकारी के अंग्रेजी में हस्ताक्षर प्राप्त होते हैं। नक्शे की हद के बाहर भी अन्य अधिकारियों के हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है।
इस हदबस्ती नक्शे में हनुमानगढ़ी से पश्चिमी छोर पर भगवा रंग में जो आयताकार भवन दिखाया गया है, वह दो भागों में विभाजित है। इस भवन के दक्षिण में उर्दू में इसे स्पष्ट रूप से जन्म अस्थान बताया गया है। दो भागोंवाले इस भवन का उत्तरी भाग, सीता जी की रसोई है और दक्षिणवाला भाग श्रीरामजन्मभूमि है। इसमें पाँच गुम्बद दिखाए गए हैं। यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि इस प्रामाणिक नक्शे में कहीं पर भी बाबरी मस्जिद शब्द लिखा हुआ नहीं मिलता। वस्तुत: सारे भवन को स्पष्ट रूप से जन्म अस्थान बताया गया है जिसका बड़ा सीधा और निभ्रान्त अर्थ श्रीराम का जन्मस्थान ही है, अन्य कुछ नहीं।

बन्दोबस्त दोयम (1893 ई.) और पूरक नक्शा
इससे सम्बन्धित दस्तावेज खसरा सन् 1301 फसली (1893 ईसवी) बाबत मौजा कोट-राम-चन्दर परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद के नाम से उपलब्ध होते हैं। इनमें श्रीरामजन्मभूमि-परिसर के खसरा-नं. 163 के 1.9 के बजाय 1.4=5 भाग कर दिए गए हैं जबकि कुल भूमि का रक्बा पहले की भाँति 5 बीघा 4 बिस्वा ही है।
इनके पूरक के रूप में एक नक्शा नक्शा किश्तवार तरमीमशुदा (संशोधित) मौजा कोट-राम-चन्दर परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद मुताबिक सन् 1894-1895 ई. के नाम से उपलब्ध होता है। इसमें खसरा नं. 163/5 (1 बीघा 10 बिस्वा) हनुमानगढ़ी को जानेवाली सड़क के उत्तर में दिखाया गया है। यही भाग सीता जी की रसोई कहलाता है। सड़क के दक्षिण में खसरा-नं. 163/1-4 पड़ते हैं जिनमें मुख्य श्रीराम जन्मभूमि आती है। इस नक्शे के अनुसार पूरे श्रीराम जन्मभूमि परिसर में कहीं पर भी कब्रें नहीं दिखाई गई हैं।

बन्दोबस्त सोयम (1937 ई.) और नक्शा
यह साफ खसरा मशमूला मिसल बन्दोबस्त सन् 1344 फसली (1936-1937 ई.) बाबत मौजा कोट-राम-चन्दर परगना हवेली अवध तहसील व जिला फैजाबाद के नाम से प्राप्त होता है। इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 02.02.1991 को प्राप्त हुई थी। इसमें श्रीराम जन्मभूमि परिसर से संबंधित पूर्ववर्ती खसरों के नम्बर बदल दिए गए हैं। बन्दोबस्त साबिक अव्वल = 1861 ई. में जो श्रीरामजन्मभूमि-परिसर खसरा-नं. 163 (नौ गोशों सहित) में और बन्दोबस्त दोयम (1893 ई.) के खसरा-नं. 163/1-5 में आता था, वह बन्दोबस्त सोयम (1936-37 ई.) में अब खसरा-नं. 146, 158 (सड़क), 159 और 160 में आता है। इस विषय में इतिहासकार श्री बी.आर. ग्रोवर ने अपनी एविडेंस फ्रॉम दी रेवेन्यु रिकार्ड शीर्षक रिपोर्ट के पैरा 51-54, पृष्ठ 72-78 पर बड़े विस्तार से लिखा है। अत: यहाँ संक्षेप में लिखा है।
बन्दोबस्त सोयम (1936-37 ई.) के पूरक के रूप में जो नक्शा उपलब्ध है, दिनांक 19.12.1986 को प्राप्त उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि के ऊपर सुविधापूर्वक समझने की दृष्टि से नं. 4 लिख दिया गया है। नं. 3 वाला नक्शा मूल उर्दू में है जबकि नं. 4 वाला नक्शा उसका हिंदी-रूपान्तर है। इसमें पूर्व की ओर खसरा-नं. 76 में हनुमानगढ़ी बनी हुई है। इस गढ़ी के पश्चिम की ओर कोट-राम-चन्दर के किनारे पर पीले रंग में दिखाया हुआ स्थान श्रीराम जन्मभूमि परिसर है। इसका उत्तरी भाग सीता जी की रसोई के रूप में जाना जाता है और सड़क के दक्षिण की ओर का भाग श्रीराम जन्मभूमि कहलाता है। इस सड़क के पश्चिमी किनारे पर उर्दू में स्पष्ट रूप से जन्मभूमि को शब्द लिखे हुए हैं जिन्हें पीले रंग से हाइलाइट कर दिया गया है। ये शब्द यह दर्शाते हैं कि यह सड़क श्रीराम जन्मभूमि को जाती है जो पूर्व की ओर कुछ ही पगों की दूरी पर है।

सार-रूप में समझने योग्य बातें :
ऊपर जो भी प्रमाण दिए गए हैं, उनसे सार रूप में समझने योग्य जो बातें निकलकर सामने आती हैं, उन्हें इस प्रकार जाना जा सकता है :
1. बन्दोबस्त साबिक अव्वल (1861 ई.) के पूरक के रूप में जो नक्शा हदबस्त (1861 ई.) मिलता है, जिसके ऊपर सुविधा के लिए नं. 2 लिख दिया गया है, उसमें कोट-राम-चन्दर के पश्चिमी छोर पर दिखाए गए आयताकार भवन=निर्माण को उर्दू में बड़े ही स्पष्ट शब्दों में जन्म-अस्थान बताया गया है। अत: इसे बाबरी मस्जिद नहीं माना जा सकता।
2. बन्दोबस्त सोयम=तृतीय (1936-37 ई.) के पूरक के रूप में जो नक्शा किश्तवार बाबत सन् 1937 ई. मुताबिक सन् 1344-45 फसली प्राप्त होता है, जिसके ऊपर सुविधा के लिए नं. 4 लिख दिया है, उसमें रामकोट=कोट-राम-चन्दर में जो सड़क पूर्व में स्थित हनुमानगढ़ी से पश्चिमी छोर तक जाती हुई दिखाई गई है, उसके अन्त में उर्दू में बड़े स्पष्ट रूप से जन्मभूमि को शब्द लिखे मिलते हैं। इस सड़क (खसरा नं. 158) के बिल्कुल पश्चिमी छोर पर क्रमश: उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर खसरा नं. 145 और 159 दिखाए गए हैं। जब भी कोई व्यक्ति इस सड़क से पूर्व में हनुमानगढ़ी की ओर बढेगा, तो कुछ ही पगों की दूरी पर अपने बाएँ हाथ की ओर यानी सड़क के उत्तरी किनारे पर खसरा-नं. 146 पाएगा। इसी खसरे में सीता जी की रसोई स्थित है। इसी के ठीक सामने सड़क के दक्षिणी किनारे पर वह खसरा नं. 160 पाएगा जिसमें श्रीरामजन्मभूमि बनी हुई है। इस सड़क (खसरा नं. 158) के बिल्कुल पश्चिमी छोर के आगे उर्दू में जो जन्मभूमि को शब्द नक्शे में लिखे मिलते हैं, वे सीता जी की रसोई और श्रीरामजन्मभूमि की निकटवर्ती स्थिति को सार्थक बनाते हैं। इन्हीं दोनों निर्माणों को नक्शा हदबस्त (1861 ई.) में जन्म-अस्थान बताया गया है।
3. यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि विशुद्ध रूप में प्राप्त रेवेन्यू रिकार्ड में कहीं पर भी बाबरी मस्जिद शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। हाँ, बन्दोबस्त साबिक अव्वल के खसरा किश्तवार बाबत सन् 1861 ई. नामक दस्तावेज में खसरा-नं. 163 (9 गोशों सहित) के अंतर्गत जहाँ-जहाँ पर व जमा=जुमा मस्जिद या व मुआफी या व अजहर हुसैन शब्दों का इण्टरपोलेशन=प्रक्षेप किया गया है, उनके विषय में हस्तलिपि-विशेषज्ञ और विधिविज्ञान प्रयोगशाला द्वारा की गई जांच में सिद्ध हो गया है कि ये शब्द बाद में जान-बूझकर बढ़ाए गए हैं।
4. चूंकि यह इण्टरपोलेशन=प्रक्षेप बड़े ही स्पष्ट रूप से मुस्लिम-पक्ष में जाता हुआ दिखाई देता है, इसलिए इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि यह सारी हेरा-फेरी मुसलमानों या उनके हमदर्दों ने ही करवाई थी। इस पर भी वे लोग रेवेन्यू रिकार्ड में बाबरी मस्जिद शब्द का प्रक्षेप करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए !!
5. अयोध्या-विवाद में जो-जो भी वामपंथी इतिहासकार, मीडिया से जुड़े एंकर-पत्रकार, विविध राजनीतिक दलों से जुड़े राजनेता और इन सबके समर्थक लोग विगत कई दशकों से मुसलमानों का पक्ष लेते हुए बाबरी मस्जिद – बाबरी मस्जिद का राग निरन्तर आलापते चले आ रहे हैं, उनकी बातें रेवेन्यू रिकार्ड के समक्ष सर्वथा असंगत, मनगढ़न्त और निराधार सिद्ध होती हैं। वस्तुत: श्रीराम जन्मभूमि से संबंधित किसी भी प्रामाणिक दस्तावेज में बाबरी मस्जिद शब्द का उल्लेख नहीं मिलता।