हडज़ोड़ : पकौडिय़ां खाएं, हड्डियां जोड़ें

ममता रानी

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।


बारिश जाने वाली है और सर्दियां आने वाली है। वैसे तो बारिश में भी वात की समस्या बढ़ जाती है परंतु हड्डियों के दर्द वालों को सर्दियां खासा परेशान करती हैं। हालांकि बारिश और सर्दियों का मौसम ऐसा होता है जिसमें पकौडिय़ों जैसी तली-भुनी चीजें खाने में काफी मजा आता है। ऐसे में मुझे याद आती है अपने गाँव की बुजुर्ग दादी-नानियों की। वे किसी चीज विशेष की पकौडिय़ां तल कर खाया करती थीं और हम बच्चों को मांगने पर भगा देती थीं कि यह हमारे लिए नहीं है। यह उनके हड्डियों तथा जोड़ों के दर्द के लिए है। इसे केवल बूढ़े लोग ही खाते हैं। वह चीज विशेष एक बेल का तना था। उस तने को छील तथा पीसकर उसकी पकौडिय़ां तल ली जाती थीं। कई बार कबाब या टिक्की की तरह उसे सेंक लिया जाता था। वह तना था हडज़ोड़ का।
हडज़ोड़ जंगल में पैदा होने वाली एक प्रकार की खर-पतवार है। बारिश के मौसम में यह खूब फैल जाती है। जगह-जगह पर इसकी लता फैली हुई मिलती है। यह हरे रंग की एक चतुर्भुज बेल है और हरेक चार से पाँच अंगुल पर इसमें जोड़ होते हैं। यदि इसे घर में लगाना हो तो इसके लिए भी सावन-भादो के बारिश वाले महीने ही सर्वोत्तम हैं। इसके तने के दो जोड़ भी गमले में लगा दिए जाएं तो यह सरलता से लग जाती है और शीघ्र ही फैलने लगती है। ठंड आते-आते यह खाने लायक फैल जाती है।
अपने नाम के अनुरूप हडज़ोड़ हड्डियों के लिए काफी गुणकारी बेल है। यह हड्डियों को जोडऩे में बहुत प्रभावकारी है। हडज़ोड़ की प्रकृति गर्म होती है, इसलिए इसे सामान्यत: सर्दियों के मौसम में ही खाया जाता है। भारत में तो इसका उपयोग अति प्राचीन काल से ही होता रहा है। बीच में जब आयुर्वेद से हमारी दूरी हो गई और हम ऐलोपैथिक दवाओं पर निर्भर हो गए, तब से इसका उपयोग लोग भूल गए। कहीं भी दर्द होने पर झट से एक दर्दनिवारक एलोपैथिक गोली ले लेना आज की आदतों में शामिल हो गया है। परंतु हम भूल जाते हैं कि ये दर्दनिवारक गोलियां केवल दर्द के अहसास को समाप्त करती हैं, दर्द तो अपनी जगह पर रहता ही है। अब जब फिर से आयुर्वेद में शोध होने लगे हैं, तो हडज़ोड़ जैसी औषधियां फिर से चर्चा में आने लगी हैं। इसमें स्वामी रामदेव का भी बड़ा योगदान है जिन्होंने घर-घर में योग और आयुर्वेद को पहुँचा दिया है।
बहरहाल, हडज़ोड़ केवल हड्डियों को जोडऩे वाली बेल नहीं है, इसमें और भी कई रोगों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है। आधुनिक विज्ञान की भाषा में कहें तो हडज़ोड़ में पोटैशियम, सोडियम और कैल्शियम कार्बोनेट पर्याप्त मात्रा मंभ पाया जाता है। इनके कारण हडज़ोड़ बढ़ती आयु के कारण होने वाली बीमारियों को दूर करने में काम आता है। उदाहरण के लिए ऑस्टियोपोरेसिस यानी कि अस्थिक्षय, रक्तचाप, आँखों के किसी भी प्रकार के रोग, स्त्रियों की रजोनिवृत्ति जैसी समस्याओं में यह काफी लाभकारी है। रजोनिवृत्ति के बाद स्त्रियों में विशेषरूप से अस्थिक्षय की समस्या बढऩे लगती है। हडज़ोड़ में उपस्थित प्राकृतिक एनाबोलिक हार्मोन्स इससे बचाव करने में सक्षम है। बढ़ती आयु के साथ शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है, हडज़ोड़ में उपलब्ध कैल्शियम इस समस्या को दूर करता है। हडज़ोड़ टूटी हुई हड्डियों को केवल जोड़ता ही नहीं है, बल्कि यह उन्हें मजबूत और लचीला भी बनाता है। शोध में पता चला है कि हडज़ोड़ के प्रयोग से हड्डी के जुडऩे के समय में 33 से 50 प्रतिशत तक की कमी आती है। इसलिए यह एथलीट खिलाडिय़ों के लिए भी काफी उपयोगी है। रक्तचाप और मोटापे को नियंत्रित करने में भी हडज़ोड़ काफी उपयोगी है। कुछ शोधों में इसे डायबीटिज टाइप टू पर भी काफी प्रभावकारी पाया गया है। यह खून में शर्करा की मात्रा को कम करता है। इस कारण हडज़ोड़ का पाउडर और उसका रस काफी बिकने लगा है। ऑनलाइन शापिंग की वेबसाइट अमेजन पर यह काफी मंहगे दामों में बिकती है। हिमालया जैसी कंपनियों ने भी इसके कैप्सुल निकाल दिये हैं।
आयुर्वेद के मत में हडज़ोड़ वात और कफ दोनों का शमन करती है। यह गरम और विरेचक है। पेट के कीड़ों को नष्ट करती है। यह वाजीकारक भी होती है। यह पाचनशक्ति को भी बढ़ाता है। हडज़ोड़ के उपयोग से बनने वाली आयुर्वेदिक औषधि है लाक्षादि गुग्गुल। सर्दियों में यह शरीर को गर्म भी रखती है और वात के कारण होने वाले दर्द से भी छुटकारा दिलाती है। हडज़ोड़ के औषधीय प्रयोग बहुत हैं। बालों को मजबूत बनाने से लेकर खराब गले और फोड़े-फुंसियों तक में इसे लाभकारी पाया गया है। परंतु उन प्रयोगों को करने में वैद्यकीय सहायता लेनी आवश्यक है। औषधि के रूप में प्रयोग करने के लिए इसका काढ़ा पीया जाता है। यहाँ तो हम हडज़ोड़ का घरेलू प्रयोग पकौडिय़ों के रूप में बता रहे हैं, जो पूरी तरह निरापद है। कह सकते हैं कि पकौडिय़ां खाएं और हड्डियां जोड़े, दर्द भगाएं। हड्डियों को जोडऩे का यह एक स्वादिष्ट नुस्खा है। इसका नियमित प्रयोग हमें मंहगे इलाज से बचा सकता है।
हडज़ोड़ का घर में प्रयोग करना हो तो थोड़ी सावधानी रखने की आवश्यकता है। इसे तोड़ते या छीलते समय जो रस निकलता है, वह खुजली पैदा करता है। इसलिए इसे तोड़ते और छीलते समय दस्तानों का प्रयोग करना चाहिए। कई स्थानों पर हडज़ोड़ की चटनी आदि खाने के बारे में लिखा मिलता है। परंतु इसकी चटनी का स्वाद अच्छा नहीं होता। कच्चे हडज़ोड़ का स्वाद कच्ची अरबी की तरह तीखा और कसैला होता है। इसे कच्चा कभी भी न खाएं। इससे मुँह में जलन या छाले भी हो सकते हैं।। इसका उपयोग हमेशा उबाल कर या तल कर ही करें। इसलिए अधिक अच्छा है कि इसे हम पकौडिय़ों की तरह तल कर या फिर कबाब की तरह सेंक कर खाएं। यहाँ हडज़ोड़ की पकौडिय़ां बनाने की विधि दी जा रही है। हडज़ोड़ की पकौडिय़ां मसूर की दाल में मिला कर बनाई जाती हैं। मसूर की दाल भी गर्म मानी जाती है। मसूर की दाल की बजाय कई स्थानों पर उड़द या मूंग की दाल का भी प्रयोग किया जाता है।

 


हडज़ोड़ की पकौडिय़ां

सामग्री:
मसूर की दाल 100 ग्राम
हडज़ोड़ का तना 05 टुकड़े
लहसुन 10 कलियां
हरी मिर्च एक अथवा स्वादानुसार
हल्दी आधा छोटा चम्मच
काली मिर्च पाउडर आधा छोटा चम्मच
नमक स्वादानुसार

विधि:
मसूर की दाल को रात भर के लिए या फिर कम से कम चार घंटों के लिए पानी में भिगो दें। हडज़ोड़ को सावधानीपूर्वक छील लें। उसके हरे भाग को निकाल देना है। उसे छीलते समय दस्ताने पहनना अच्छा रहेगा। भिगोई हुई दाल में छिली हुए हडज़ोड़ के तने के टुकड़े, लहसुन की कलियां, मिर्च और नमक मिला कर पीस लें। मिक्सी में पीस सकते हैं, परंतु सिल-बट्टे पर पीसने पर और अच्छा स्वाद आता है। पिसे हुए मिश्रण में हल्दी और काली मिर्च का पाउडर मिला लें। अब इसकी पकौडिय़ां तल लें या फिर फ्राइंग पैन में कबाब की तरह सेंक लें। सरसों के तेल में तलने या सेंकने से अच्छा रहेगा। वैसे तो इन्हें कभी भी खाया जा सकता है परंतु यदि हड्डियां टूटी हुई हों या फिर रोग बढ़ा हुआ हो तो इन्हें सुबह खाली पेट खाना अधिक लाभकारी रहता है। इस प्रकार स्वादिष्ट पकौडिय़ां खाइये और हड्डियां जोडि़ए।